ऐ दिल उस ज़ुल्फ़ की रखियो न तमन्ना बाक़ी
हश्र तक वर्ना रहेगी शब-ए-यलदा बाक़ी
तिरे हंगामा से ख़ुश हूँ मगर ऐ जोश-ए-जुनूँ
कुछ क़यामत के लिए भी रहे ग़ौग़ा बाक़ी
आप को बेच चुका हूँ तिरे ग़म के हाथों
है मगर इश्क़ का तेरे अभी सौदा बाक़ी
ग़म-ए-हिज्राँ में गई जान चलो ख़ूब हुआ
दोस्तों को न रहे फ़िक्र-ए-मुदावा बाक़ी
जान सीने से निकलने को है दिल पहलू से
है फ़क़त उस निगह-ए-नाज़ का ईमा बाक़ी
ख़ाक-ए-आशिक़ से उगाता है मुग़ीलाँ का दरख़्त
उस की मिज़्गाँ का है मरक़द में भी खटका बाक़ी

ग़ज़ल
ऐ दिल उस ज़ुल्फ़ की रखियो न तमन्ना बाक़ी
आशिक़ अकबराबादी