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ऐ दिल उस ज़ुल्फ़ की रखियो न तमन्ना बाक़ी | शाही शायरी
ai dil us zulf ki rakhiyo na tamanna baqi

ग़ज़ल

ऐ दिल उस ज़ुल्फ़ की रखियो न तमन्ना बाक़ी

आशिक़ अकबराबादी

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ऐ दिल उस ज़ुल्फ़ की रखियो न तमन्ना बाक़ी
हश्र तक वर्ना रहेगी शब-ए-यलदा बाक़ी

तिरे हंगामा से ख़ुश हूँ मगर ऐ जोश-ए-जुनूँ
कुछ क़यामत के लिए भी रहे ग़ौग़ा बाक़ी

आप को बेच चुका हूँ तिरे ग़म के हाथों
है मगर इश्क़ का तेरे अभी सौदा बाक़ी

ग़म-ए-हिज्राँ में गई जान चलो ख़ूब हुआ
दोस्तों को न रहे फ़िक्र-ए-मुदावा बाक़ी

जान सीने से निकलने को है दिल पहलू से
है फ़क़त उस निगह-ए-नाज़ का ईमा बाक़ी

ख़ाक-ए-आशिक़ से उगाता है मुग़ीलाँ का दरख़्त
उस की मिज़्गाँ का है मरक़द में भी खटका बाक़ी