EN اردو
ऐ दिल-नशीं तलाश तिरी कू-ब-कू न थी | शाही शायरी
ai dil-nashin talash teri ku-ba-ku na thi

ग़ज़ल

ऐ दिल-नशीं तलाश तिरी कू-ब-कू न थी

ज़िया जालंधरी

;

ऐ दिल-नशीं तलाश तिरी कू-ब-कू न थी
अपने से इक फ़रार था वो जुस्तुजू न थी

इज़हार ना-रसा सही वो सूरत-ए-जमाल
आईना-ए-ख़याल में भी हू-ब-हू न थी

क्या सेहर था कि हँसते हुए जान दे गए
वो भी कि जिन को ताब-ए-ग़म-ए-आरज़ू न थी

क्या जाने अहल-ए-बज़्म ने क्या क्या समझ लिया
इख़्फ़ा-ए-आरज़ू थी वो चुप गुफ़्तुगू न थी

वो कौन सी सहर थी कि रोई न फूल फूल
वो शाम कौन सी थी कि ग़म से लहू न थी

हम तो फ़रेफ़्ता थे 'ज़िया' दिल की आँच पर
मंज़ूर महज़ दिलकशी-ए-रंग-ओ-बू न थी