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ऐ दिल ख़ुशी का ज़िक्र भी करने न दे मुझे | शाही शायरी
ai dil KHushi ka zikr bhi karne na de mujhe

ग़ज़ल

ऐ दिल ख़ुशी का ज़िक्र भी करने न दे मुझे

हफ़ीज़ मेरठी

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ऐ दिल ख़ुशी का ज़िक्र भी करने न दे मुझे
ग़म की बुलंदियों से उतरने न दे मुझे

घर ही उजड़ गया हो तो लुत्फ़-ए-क़याम क्या
ऐ गर्दिश-ए-मुदाम ठहरने न दे मुझे

मक़्सद ये है सुकूँ किसी सूरत न हो नसीब
ऐ चारासाज़ बात भी करने न दे मुझे

चेहरे पे खाल तक भी न छोड़ेंगे बद-निगाह
ऐ मेरे ख़ैर-ख़्वाह सँवरने न दे मुझे

है देखने की चीज़ जो बिस्मिल का रक़्स भी
दुनिया ये चाहती है कि मरने न दे मुझे

ये दौर संग-दिल ही नहीं तंग-दिल भी है
गर बस चले तो आह भी करने न दे मुझे

अब भी ये हौसला है कि कुछ काम आ सुकूँ
मैं टूट तो गया हूँ बिखरने न दे मुझे