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ऐ दर्द न थम सर और उठा दिल चारागरी की राह न तक | शाही शायरी
ai dard na tham sar aur uTha dil chaaragari ki rah na tak

ग़ज़ल

ऐ दर्द न थम सर और उठा दिल चारागरी की राह न तक

अफ़ीफ़ सिराज

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ऐ दर्द न थम सर और उठा दिल चारागरी की राह न तक
देख अश्क-फ़िशाँ है अब तुझ पर सहराओं में दीवाना तक

तुम लौट चुके हो गर तो कहो या बाक़ी है अरमान अभी
पहले ही तुम्हें हम दे बैठे हैं जान का ये नज़राना तक

सहरा में बसे सब दीवाने शहरों में भी महशर है बरपा
अल्लाह तिरी इस ख़िल्क़त से बाक़ी न रहा वीराना तक

तिमसाल पे ख़ून-ए-नाहक़ भी और आतिश-ए-ज़ुल्म-ओ-जौर भी है
डूबी हुई चश्म-ए-शौक़ भी है ख़ुश-रंग रुख़-ए-जानाना तक

खिड़की दरवाज़े बंद करो मसनद भी समेटो ऐ लोगो
मुतरिब भी गए शमएँ भी बुझीं और ख़त्म हुआ अफ़्साना तक