ऐ भँवर तेरी तरह बेबाक हो जाएँगे हम
साथ में रह कर तिरे तैराक हो जाएँगे हम
देख मौजों के हवाले इस तरह मत कर हमें
वर्ना ऐ साहिल तिरे सफ़्फ़ाक हो जाएँगे हम
शाख़ से कट कर अलग होने का हम को ग़म नहीं
फूल हैं ख़ुशबू लुटा कर ख़ाक हो जाएँगे हम
हम कबूतर की तरह शफ़्फ़ाफ़ हैं मासूम हैं
तू मिटाएगा तो फिर चालाक हो जाएँगे हम
ओढ़ लेंगे ये ज़मीं चादर की तरह एक दिन
एक दिन मिट्टी तिरी ख़ुराक हो जाएँगे हम
सुब्ह होते ही उमीदें थपकियाँ देंगी हमें
शाम होते ही बहुत नमनाक हो जाएँगे हम
आग तो गुलज़ार बन जाती है राह-ए-शौक़ में
तुम समझते थे कि जल कर राख हो जाएँगे हम
ज़िंदगी रस्सी पे चलता इक मदारी है 'वसीम'
क्या पता है कब सुपुर्द-ए-ख़ाक हो जाएँगे हम

ग़ज़ल
ऐ भँवर तेरी तरह बेबाक हो जाएँगे हम
वसीम मलिक