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ऐ अहल-ए-नज़र सोज़ हमीं साज़ हमीं हैं | शाही शायरी
ai ahl-e-nazar soz hamin saz hamin hain

ग़ज़ल

ऐ अहल-ए-नज़र सोज़ हमीं साज़ हमीं हैं

सिराजुद्दीन ज़फ़र

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ऐ अहल-ए-नज़र सोज़ हमीं साज़ हमीं हैं
आलम में पस-पर्दा-ए-परवाज़ हमीं हैं

ऐ जब्र-ए-मशीयत ब-हमा बे-पर-ओ-बाली
अब भी है जिन्हें हिम्मत-ए-परवाज़ हमीं हैं

ख़ुश हैं कि नहीं उस सितम-आरा का सितम आम
नाज़ाँ हैं कि उस के हदफ़-ए-नाज़ हमीं हैं

वो अंजुमन-ए-नाज़-ए-बुताँ हो कि सर-ए-दार
जिस सम्त से गुज़रे हैं सर-अफ़राज़ हमीं हैं

देखें जो किसी और तरफ़ भी वो सर-ए-बज़्म
मक़्सूद-ए-निगाह-ए-ग़लत-अंदाज़ हमीं हैं

ऐ शाहिद-ए-मा'नी सफ़-ए-शीरीं-सुख़नाँ में
है कोई अगर शाइ'र-ए-तन्नाज़ हमीं हैं

ऐ जान-ए-'ज़फ़र' 'हाफ़िज़'-ओ-'सादी' की क़फ़ा में
अब वारिस-ए-मय-ख़ाना-ए-शीराज़ हमीं हैं