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ऐ आवारा यादो फिर ये फ़ुर्सत के लम्हात कहाँ | शाही शायरी
ai aawara yaado phir ye fursat ke lamhat kahan

ग़ज़ल

ऐ आवारा यादो फिर ये फ़ुर्सत के लम्हात कहाँ

राही मासूम रज़ा

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ऐ आवारा यादो फिर ये फ़ुर्सत के लम्हात कहाँ
हम ने तो सहरा में बसर की तुम ने गुज़ारी रात कहाँ

मेरी आबला-पाई उन में याद अक्सर की जाती है
काँटों ने इक मुद्दत से देखी थी कोई बरसात कहाँ

बे-हिस दीवारों का जंगल काफ़ी है वहशत के लिए
अब क्यूँ हम सहरा को जाएँ अब वैसे हालात कहाँ

जिस को देखो फ़िक्र-ए-रफ़ू है जिस को देखो वो नासेह
बस्ती वालों में हार आए वहशत की सौग़ात कहाँ