EN اردو
अहल-ए-जहाँ के मिलने से हम एहतिराज़ कर | शाही शायरी
ahl-e-jahan ke milne se hum ehtiraaz kar

ग़ज़ल

अहल-ए-जहाँ के मिलने से हम एहतिराज़ कर

जोशिश अज़ीमाबादी

;

अहल-ए-जहाँ के मिलने से हम एहतिराज़ कर
बैठे हैं गोशा-गीर हो इस दिल से साज़ कर

सूरत उसी की है मुतजल्ली हर एक में
देखे जो कोई चश्म-ए-हक़ीक़त को बाज़ कर

सज्दा जिसे करें हैं हर-सू है जल्वा-गर
जीधर तिरा मिज़ाज हो ऊधर नमाज़ कर

गो आसमान पर भी उड़ा तू तो क्या हुआ
मैं कौन हूँ कहाँ हूँ ये भी इम्तियाज़ कर

कल एक पल भी तू न थमा उस के रू-ब-रू
ऐ अश्क क्या मिला तुझे इफ़शा-ए-राज़ कर

'जोशिश' हो जब तलक कि हक़ीक़त से तुझ को राह
तब तक बराए-शुग़्ल तू सैर-ए-मजाज़ कर