अहल-ए-हवस के हाथों न ये कारोबार हो
आबाद हों सितारे ज़मीं रेगज़ार हो
इक शान ये भी जीने की है जी रहे हैं लोग
तूफ़ान से लगाओ समुंदर से प्यार हो
हालात में कभी ये तवाज़ुन दिखाई दे
ग़म मुस्तक़िल रहे न ख़ुशी मुस्तआ'र हो
नफ़रत के संग-रेज़ों की बारिश थमे कभी
दैर-ओ-हरम के बीच सफ़र ख़ुश-गवार हो
सदियों से घुल रही है इसी फ़िक्र में हयात
रहज़न से पाक ज़ीस्त की हर रहगुज़ार हो
बाद-ए-सुमूम लूट ले चेहरों की ताज़गी
अगली सदी की ऐसी न फ़स्ल-ए-बहार हो
'नजमी' जो अपने अहद की तारीख़ बन गए
उन शाइ'रों में काश मिरा भी शुमार हो
ग़ज़ल
अहल-ए-हवस के हाथों न ये कारोबार हो
हसन नज्मी सिकन्दरपुरी