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अहद-ओ-पैमाँ कर के पैमाने के साथ | शाही शायरी
ahd-o-paiman kar ke paimane ke sath

ग़ज़ल

अहद-ओ-पैमाँ कर के पैमाने के साथ

रविश सिद्दीक़ी

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अहद-ओ-पैमाँ कर के पैमाने के साथ
उम्र गुज़री तेरे मयख़ाने के साथ

ज़िंदगी भी जी चुरा कर रह गई
कौन मरता तेरे दीवाने के साथ

ये न पूछो रह-नवरदान-ए-हरम
कौन छूटा हम से बुत-ख़ाने के साथ

ख़ुद-बख़ुद हल हो गए कितने सवाल
वक़्त के ख़ामोश अफ़्साने के साथ

ऐ फ़क़ीह-ए-शहर क्या इस का इलाज
चश्म-ए-साक़ी भी है पैमाने के साथ

होश-मंदों पर गराँ हैं ऐ 'रविश'
उन की बातें तुझ से दीवाने के साथ