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अहद हाज़िर में अयार-ए-सुब्ह तो बदला मगर | शाही शायरी
ahd hazir mein ayar-e-subh to badla magar

ग़ज़ल

अहद हाज़िर में अयार-ए-सुब्ह तो बदला मगर

निहाल सेवहारवी

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अहद हाज़िर में अयार-ए-सुब्ह तो बदला मगर
ऐ अँधेरी रात तुझ को भी बदलना चाहिए

बावजूद-ए-ग़म मुसलसल क़हक़हे ऐ ना-मुराद
कारवान-ए-ज़िंदगी के साथ चलना चाहिए

शान-ए-रिंदाना की है तौहीन अज़-ख़ुद-रफ़्तगी
सहल है पीना मगर पी कर सँभलना चाहिए

ज़िंदगी वो क्या जो है ना-वाक़िफ़-ए-आशोब-ए-इश्क़
सीना-ए-आदम में तूफ़ानों को पलना चाहिए

इक़तिज़ा-ए-असर-ए-नौ है ज़िंदगी तो दरकिनार
मौत को भी हुस्न के साँचे में ढलना चाहिए

ऐ जुनूँ कुछ देर शग़्ल-ए-ख़ाक-बाज़ी ही सही
दिल तो इस सहरा-ए-हस्ती में बहलना चाहिए