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अहद-ए-वफ़ा न याद दिलाएँ तो क्या करें | शाही शायरी
ahd-e-wafa na yaad dilaen to kya karen

ग़ज़ल

अहद-ए-वफ़ा न याद दिलाएँ तो क्या करें

अशरफ़ रफ़ी

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अहद-ए-वफ़ा न याद दिलाएँ तो क्या करें
हम उन को हाल-ए-दिल न सुनाईं तो क्या करें

जिन से नहीं है आप की मंज़िल को वास्ता
उन रास्तों से लौट न जाएँ तो क्या करें

वो हर तरफ़ हैं सम्त की जब क़ैद ही नहीं
दैर-ओ-हरम में सर न झुकाएँ तो क्या करें

मोहकम है रब्त-ए-इश्क़ तो नज़दीक-ओ-दूर क्या
आएँ तो क्या करें वो न आएँ तो क्या करें

माना कि हम को ताब-ए-नज़र है न शौक़-ए-दीद
रुख़ से वो ख़ुद ही पर्दा उठाएँ तो क्या करें

'अशरफ़' को था अमल से ज़ियादा करम पे नाज़
काम आ गई हैं उस की ख़ताएँ तो क्या करें