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अहद-ए-पीरी ने हमें रंग दिखाए क्या क्या | शाही शायरी
ahd-e-piri ne hamein rang dikhae kya kya

ग़ज़ल

अहद-ए-पीरी ने हमें रंग दिखाए क्या क्या

तमीज़ुद्दीन तमीज़ देहलवी

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अहद-ए-पीरी ने हमें रंग दिखाए क्या क्या
सर पे हो शाम तो बढ़ जाते हैं साए क्या क्या

ठोकरें लगने लगीं ज़ोफ़-ए-बसारत के सबब
देखिए ज़ोफ़-ए-समाअ'त भी दिखाए क्या क्या

तर्क उल्फ़त की कभी और कभी तर्क मय की
अब तो अहबाब भी देने लगे राय क्या क्या

वाए नादानी-ए-दिल इस ने मोहब्बत कर के
रंज-ओ-ग़म मोल लिए बैठे-बिठाए क्या क्या

ख़ुद को रुस्वा किया हर राज़ छुपा कर उस का
अपने सर ले लिए इल्ज़ाम पराए क्या क्या

ऐश-ओ-इशरत से सदा काम जवानी में रहा
शेर-ओ-नग़्मा से शब-ओ-रोज़ सजाए क्या क्या

साया-ए-ज़ुल्फ़ कभी और कभी दामन की हवा
उस के अल्ताफ़-ओ-करम याद न आए क्या क्या

फ़िक्र-ए-उक़्बा से लरज़ते हैं अब आ'साब-ए-'तमीज़'
देखिए फ़र्द-ए-अमल सामने लाए क्या क्या