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अहद-ए-हाज़िर ने जो ठुकराया बहुत | शाही शायरी
ahd-e-hazir ne jo Thukraya bahut

ग़ज़ल

अहद-ए-हाज़िर ने जो ठुकराया बहुत

महमूद राय बरेलवी

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अहद-ए-हाज़िर ने जो ठुकराया बहुत
वो पुराना दौर याद आया बहुत

क्या मिला मेरी तबाही पर उन्हें
ख़ंदा-ज़न है मेरा हम-साया बहुत

ऐश-ओ-इशरत में तो हम भूले रहे
दुख मुसीबत में वो याद आया बहुत

हो मुबारक लज़्ज़त-ए-इफ़रात-ए-ग़म
है ये अर्ज़ानी गराँ-माया बहुत

छत नहीं मेरे मकाँ में तो न हो
आसमाँ का है मुझे साया बहुत

ख़ुश्क खेतों पर फ़क़त गरजा किए
और दरियाओं पे बरसाया बहुत

जिस पे पड़ जाए वही 'महमूद' हो
है पसंदीदा मिरा साया बहुत