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अगली गली में रहता है और मिलने तक नहीं आता है | शाही शायरी
agli gali mein rahta hai aur milne tak nahin aata hai

ग़ज़ल

अगली गली में रहता है और मिलने तक नहीं आता है

जमीलुद्दीन आली

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अगली गली में रहता है और मिलने तक नहीं आता है
कहता है तकल्लुफ़ क्या करना हम तुम में तो प्यार का नाता है

कहता है ज़ियादा मिलने से वादों की ख़लिश बढ़ जाएगी
कुछ वादे वक़्त पे भी छोड़ो देखो वो क्या दिखलाता है

कहता है तुम्हारा दोश न था कुछ हम को भी अपना होश न था
फिर हँसता है फिर रोता है फिर चुप हो कर रह जाता है

ख़ुद उस से कहा घर आने को और उस के बिना मर जाने को
और अब जो वो कुछ आवारा हुआ जी रह रह कर घबराता है

ऐ बच्चो ऐ हँसने वालो तारीख़-ए-मोहब्बत पढ़ डालो
दिल वाले के दिल पर क़ैद नहीं हर उम्र में ठोकर खाता है