अगरचे मुझ को बे-तौक़-ओ-रसन-बस्ता नहीं छोड़ा
किसी क़ैदी को उस ने इस क़दर सस्ता नहीं छोड़ा
हर इक से दूसरे का रब्त उस ने तोड़ डाला है
किसी का दिल किसी के दिल से वाबस्ता नहीं छोड़ा
ख़ुद अपने ख़्वाब चुन आया हूँ कुछ रंगीन धोकों में
किसी तितली की ख़ातिर मैं ने गुलदस्ता नहीं छोड़ा
सुनें रूदाद-ए-ग़म किस से कि आशोब-ए-तबाही ने
कोई इक भी घराना शहर में बस्ता नहीं छोड़ा
कहें क्या हाल क़ब्रों का कि अब के उस ने बस्ती में
जनाज़े भी गुज़रने का कोई रस्ता नहीं छोड़ा
कहाँ पर उस ने मुझ पर तालियाँ बजती नहीं चाहें
कहाँ किस किस को मेरे हाल पर हँसता नहीं छोड़ा
ग़ज़ल
अगरचे मुझ को बे-तौक़-ओ-रसन-बस्ता नहीं छोड़ा
इक़बाल कौसर