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अगरचे मौत को हम ने गले लगाया नहीं | शाही शायरी
agarche maut ko humne gale lagaya nahin

ग़ज़ल

अगरचे मौत को हम ने गले लगाया नहीं

मुनव्वर हाशमी

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अगरचे मौत को हम ने गले लगाया नहीं
मगर हयात का एहसान भी उठाया नहीं

नज़र के सामने इक पल भी जो नहीं ठहरा
वो कौन शख़्स है दिल ने उसे भुलाया नहीं

मैं अपने आप को किन रास्तों में भूल आया
कि ज़िंदगी ने भी मेरा सुराग़ पाया नहीं

मैं जिस के वास्ते मल्बूस-ए-हर्फ़ बुनता हूँ
वो इक ख़याल अभी ज़ेहन में भी आया नहीं

हज़ार ख़्वाहिश-ए-दुनिया हज़ार ख़ौफ़-ए-ज़ियाँ
मिरी अना का क़दम फिर भी डगमगाया नहीं

हयात-ए-जब्र का सहरा-ए-बे-कराँ जिस में
मोहब्बतों के शजर का कहीं भी साया नहीं

ज़माना गुज़रा 'मुनव्वर' उधर से गुज़रा था
हवा ने नक़्श-ए-क़दम आज तक मिटाया नहीं