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अगरचे मैं ने लिखीं उस को अर्ज़ियाँ भी बहुत | शाही शायरी
agarche maine likhin usko arziyan bhi bahut

ग़ज़ल

अगरचे मैं ने लिखीं उस को अर्ज़ियाँ भी बहुत

रशीद उस्मानी

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अगरचे मैं ने लिखीं उस को अर्ज़ियाँ भी बहुत
उड़ाईं उस ने मगर उन की धज्जियाँ भी बहुत

मिलेगा फ़ाएदा कुछ ज़ीस्त के सफ़र में मुझे
अगरचे इस में है अंदेशा-ए-ज़ियाँ भी बहुत

मिरे क़रीब जब आओगे जान जाओगे
बुराइयाँ हैं अगर मुझ में ख़ूबियाँ भी बहुत

बड़े दुखों में गुज़ारी है ज़िंदगी फिर भी
जहाँ मैं छोड़ी हैं हम ने कहानियाँ भी बहुत

दिखाई देते हैं कुछ फूल अब भी शाख़ों पर
बिखेर दी हैं हवाओं ने पत्तियाँ भी बहुत

ये और बात है महफ़ूज़ बिजलियों से न थे
मिरी निगाह में थे यूँ तो आशियाँ भी बहुत

हमारी दोस्ती ऐ दोस्त शक की ज़द में है
हैं क़ुर्बतें भी बहुत हम में दूरियाँ भी बहुत

मसर्रतों की तलब में जो घर से निकला था
उसी के हिस्से में आएँ उदासियाँ भी बहुत

अभी तो हब्स है मुश्किल है साँस लेना भी
हवा चली तो फिर आएँगी आँधियाँ भी बहुत

ग़ज़ब का हुस्न सही तेरी सादगी में मगर
पसंद हैं मुझे ऐ दोस्त शोख़ियाँ भी बहुत

मिरा ख़याल है पा लूँगा मैं 'रशीद' उसे
मिरे ख़याल में लेकिन हैं ख़ामियाँ भी बहुत