अगरचे लाई थी कल रात कुछ नजात हवा
उड़ा के ले गई बादल भी साथ साथ हवा
मैं कुछ कहूँ भी तो कैसे कि वो समझते हैं
हमारी ज़ात हवा है हमारी बात हवा
उन्हें ये ख़ब्त है वो क़ैद हम को कर लेंगे
तुम्हीं बताओ कि आई है किस के हाथ हवा
किसी भी शख़्स में ठहराओ नाम का भी नहीं
हमें तो लगती है ये सारी काएनात हवा
उड़ा के फूलों के जिस्मों से ख़ुशबुएँ सारी
करे है मेरे लिए पैदा मुश्किलात हवा
'अतीक़' बुझता भी कैसे चराग़-ए-दिल मेरा
लगी थी उस की हिफ़ाज़त में सारी रात हवा
ग़ज़ल
अगरचे लाई थी कल रात कुछ नजात हवा
अतीक़ इलाहाबादी