अगरचे कार-ए-दुनिया कुछ नहीं है
मगर इस के अलावा कुछ नहीं है
अगर धरती पे बादल ही न बरसें
तो ये दरिया अकेला कुछ नहीं है
बहुत नाराज़ हैं इक दूसरे से
मगर दोनों में झगड़ा कुछ नहीं है
ये जो कुछ हो रहा है शहर भर में
तमाशा है तमाशा कुछ नहीं है
ये मैं हूँ जो बदल जाता हूँ हर रोज़
ज़माने में बदलता कुछ नहीं है
अगर झोली न फैलाई गई हो
तो वो बेदर्द देता कुछ नहीं है
ये दुनिया है यूँही चलती रहेगी
मिरे होने से होना कुछ नहीं है
ग़ज़ल
अगरचे कार-ए-दुनिया कुछ नहीं है
शहज़ाद अहमद