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अगरचे हादसे गुज़रे हैं पानियों की तरह | शाही शायरी
agarche hadse guzre hain paniyon ki tarah

ग़ज़ल

अगरचे हादसे गुज़रे हैं पानियों की तरह

कैफ़ अंसारी

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अगरचे हादसे गुज़रे हैं पानियों की तरह
ख़मोश रह गए हम लोग साहिलों की तरह

किसी के सामने मैं किस लिए ज़बाँ खोलूँ
मिली है अपनी अना मुझ को दुश्मनों की तरह

तिरे बग़ैर नज़र आए हैं मुझे अक्सर
मकान के दर-ओ-दीवार क़ातिलों की तरह

न जाने कौन सी मंज़िल को चल दिए पत्ते
भटक रही हैं हवाएँ मुसाफ़िरों की तरह

हमीं ने खोल के लब रूह फूँक दी वर्ना
तमाम हर्फ़ थे बे-जान पत्थरों की तरह

मैं रो रहा था शब-ए-ग़म की ज़ुल्मतों से बहुत
ख़ुदा का शुक्र जले ज़ख़्म मिशअलों की तरह

यही तो 'कैफ़' हसद है कि दिल भी यारों के
सियाह हो गए लिक्खे हुए ख़तों की तरह