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अगरचे आँख बहुत शोख़ियों की ज़द में रही | शाही शायरी
agarche aankh bahut shoKHiyon ki zad mein rahi

ग़ज़ल

अगरचे आँख बहुत शोख़ियों की ज़द में रही

सूफ़ी तबस्सुम

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अगरचे आँख बहुत शोख़ियों की ज़द में रही
मिरी निगाह हमेशा अदब की हद में रही

समझ सका न कोई ज़िंदगी की अर्ज़िश को
ये जिंस-ए-ख़ास तराज़ू-ए-नेक-ओ-बद में रही

बहुत बुलंद हुआ तमकनत से ताज-ए-शही
कुलाह-ए-फ़क़्र मगर नाज़िश-ए-नमद में रही

हमेशा दर्द से आरी रहा ये ज़ाहिद-ए-ख़ुश्क
ये नाश ज़िंदा सदा गोशा-ए-लहद में रही

दिलों में बैठ गया बरहमन का हुस्न-ए-बयाँ
हदीस-ए-शैख़ तिलिस्मात-ए-रद्द-ओ-कद में रही