अगर यूँ ही ये दिल सताता रहेगा 
तो इक दिन मिरा जी ही जाता रहेगा 
मैं जाता हूँ दिल को तिरे पास छोड़े 
मिरी याद तुझ को दिलाता रहेगा 
गली से तिरी दिल को ले तो चला हूँ 
मैं पहुँचूँगा जब तक ये आता रहेगा 
जफ़ा से ग़रज़ इम्तिहान-ए-वफ़ा है 
तू कह कब तलक आज़माता रहेगा 
क़फ़स में कोई तुम से ऐ हम-सफ़ीरो 
ख़बर गुल की हम को सुनाता रहेगा 
ख़फ़ा हो के ऐ 'दर्द' मर तो चला तू 
कहाँ तक ग़म अपना छुपाता रहेगा
        ग़ज़ल
अगर यूँ ही ये दिल सताता रहेगा
ख़्वाजा मीर 'दर्द'

