EN اردو
अगर वो गुल-बदन मुझ पास हो जावे तो क्या होवे | शाही शायरी
agar wo gul-badan mujh pas ho jawe to kya howe

ग़ज़ल

अगर वो गुल-बदन मुझ पास हो जावे तो क्या होवे

दाऊद औरंगाबादी

;

अगर वो गुल-बदन मुझ पास हो जावे तो क्या होवे
ज़मीन-ए-दिल में तुख़्म-ए-इश्क़ बो जावे तो क्या होवे

सनम तुझ ज़ुल्फ़ के ज़ुन्नार के रिश्ते में आ ज़ाहिद
अपस के सुब्हा-गर्दानी कूँ खो जावे तो क्या होवे

पिला जाम-ए-शराब-ए-ऐश वो साक़ी-ए-बज़्म-आरा
ग़ुबार-ए-ग़म कूँ लौह-ए-दिल सूँ हो जावे तो क्या होवे

बयाँ करता हूँ मैं तुझ ज़ुल्फ़-ए-मुश्कीं का सनम निस दिन
ख़ुतन में गर सुख़न मेरे की बू जावे तो क्या होवे

सदा मश्क़-ए-जुनून-ए-इश्क़ में रहता है सौदाई
अगर 'दाऊद' की यू ज़िश्त-ख़ू जावे तो क्या होवे