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अगर उन के लब पर गिला है किसी का | शाही शायरी
agar un ke lab par gila hai kisi ka

ग़ज़ल

अगर उन के लब पर गिला है किसी का

रियाज़ ख़ैराबादी

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अगर उन के लब पर गिला है किसी का
तो बेजा भी शिकवा बजा है किसी का

हसीं हश्र में सर झुकाए हुए हैं
वफ़ा आज वा'दा हुआ है किसी का

वो जोबन बहुत सर उठाए हुए हैं
बहुत तंग बंद-ए-क़बा है किसी का

वो ख़ुद चाहते हैं कोई अब सताए
सताना मज़ा दे गया है किसी का

जो हैं दस्त-ए-गुस्ताख़ अपने सलामत
तो झूटा ही वा'दा वफ़ा है किसी का

वो क्यूँ उठ के ख़ल्वत से महफ़िल में आएँ
वो क्या जानें क्या मुद्दआ' है किसी का

बना लूँ ख़ुदा तो भी मेरे न होंगे
बुतों में कोई भी हुआ है किसी का

कोई गोद में झम से आ ही गया है
तसव्वुर हमें जब बँधा है किसी का

'रियाज़' और ही रंग में मस्त हैं अब
सुना है प्याला पिया है किसी का