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अगर सवाल वो करता जवाब क्या लेता | शाही शायरी
agar sawal wo karta jawab kya leta

ग़ज़ल

अगर सवाल वो करता जवाब क्या लेता

शाज़ तमकनत

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अगर सवाल वो करता जवाब क्या लेता
ये ग़म उसी ने दिया था हिसाब क्या लेता

बहुत हुजूम था ता'बीर की दुकानों पर
हमीं थे वर्ना कोई जिंस-ए-ख़्वाब क्या लेता

हमारे अहद में अर्ज़ानी-ए-नक़ाब न पूछ
मैं कोर चश्मों की ख़ातिर नक़ाब क्या लेता

फ़ुरात आज रवाँ है यज़ीद प्यासा है
ये प्यास कोई बुझा कर सवाब क्या लेता

अरे जिसे वरक़-ए-चेहरा-चेहरा याद हो 'शाज़'
भला वो आदमी दर्स-ए-किताब क्या लेता