EN اردو
अगर फिर शहर में वो ख़ुश-अदा वापस पलट आए | शाही शायरी
agar phir shahr mein wo KHush-ada wapas palaT aae

ग़ज़ल

अगर फिर शहर में वो ख़ुश-अदा वापस पलट आए

मरग़ूब अली

;

अगर फिर शहर में वो ख़ुश-अदा वापस पलट आए
मुलाक़ातों का शायद सिलसिला वापस पलट आए

मैं उस को भूल जाऊँ रात ये माँगी दुआ मैं ने
करूँ क्या मैं अगर मेरी दुआ वापस पलट आए

गुज़रता ही नहीं मौसम जुदाई के दयारों का
मिलन-रुत के किनारों से हवा वापस पलट आए

वो अब उन रास्तों पर है जहाँ बस फूल खिलते हैं
बुलावे की मिरे हर इक सदा वापस पलट आए

नए रस्ते मुबारक उस को लेकिन कुछ क़दम बढ़ कर
बिछड़ने का मुझे दे हौसला वापस पलट आए