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अगर नहीं क़स्द ऐ ज़ालिम मिरे दिल के सताने का | शाही शायरी
agar nahin qasd ai zalim mere dil ke satane ka

ग़ज़ल

अगर नहीं क़स्द ऐ ज़ालिम मिरे दिल के सताने का

अब्दुल वहाब यकरू

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अगर नहीं क़स्द ऐ ज़ालिम मिरे दिल के सताने का
सबब क्या है तुझे मुझ से नमाने से बहाने का

हुई मुद्दत नहीं ताक़त मिरे दिल कूँ जुदाई की
करम कर आ सजन या फ़िक्र कर मेरे बुलाने का

शह-ए-ख़ूबाँ मिरे घर रात को आया है ऐ मुतरिब
मिरा दिल शाद है गा राग ऐ मुतरिब शहाने का

न होवे क्यूँ के गर्दूं पे सदा दिल की बुलंद एती
हमारी आह है डंका दमामे के बजाने का

जभी हो वस्ल हाँसी सीं हिसार-ए-पैरहन तब
तिरा 'यकरू' सुनामी है नहीं हरगिज़ समाने का