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अगर मोहब्बत के मुद्दई' हो तो ये रवय्या रवा नहीं है | शाही शायरी
agar mohabbat ke muddai ho to ye rawayya rawa nahin hai

ग़ज़ल

अगर मोहब्बत के मुद्दई' हो तो ये रवय्या रवा नहीं है

एहसान दानिश

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अगर मोहब्बत के मुद्दई' हो तो ये रवय्या रवा नहीं है
जो शिकवा है रू-ब-रू नहीं है जो बात है बरमला नहीं है

ये रोज़-ए-तजदीद-ए-अहद-ए-उलफ़त ये रोज़ पैमान-ए-दिल-नवाज़ी
हज़ार तस्लीम कर रहा हूँ मगर यक़ीन-ए-वफ़ा नहीं है

है तेरे काफ़िर-शबाब से ख़ूब मेरी मा'सूम मय-गुसारी
सुरूर की एक हद है क़ाएम ग़ुरूर की इंतिहा नहीं है

अजब नहीं ज़हमत-ए-वफ़ा से मुझे किसी दिन नजात दे दे
यही मिरी बे-ज़बाँ मोहब्बत जो दर-ख़ुर-ए-ए'तिना नहीं है

न जाने किस किस से दिल लगा कर वफ़ा से मायूस हो चुका हूँ
नज़र परेशान-ए-शश-जिहत है कोई भी दर्द-आश्ना नहीं है

जता के मजबूरी-ए-मोहब्बत उमीद-ए-मेहर-ओ-वफ़ा के मा'नी
मैं ख़ुद हूँ अपना सुकून-ए-दुश्मन किसी की कोई ख़ता नहीं है

बजा बजा बे-शुमार आरिज़ नज़र नज़र को तरस रहे हैं
मगर ये दिल का मोआ'मला है निगाह का वास्ता नहीं है