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अगर मस्जिद से वाइज़ आ रहे हैं | शाही शायरी
agar masjid se waiz aa rahe hain

ग़ज़ल

अगर मस्जिद से वाइज़ आ रहे हैं

अमीर क़ज़लबाश

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अगर मस्जिद से वाइज़ आ रहे हैं
क़दम क्यूँ डगमगाए जा रहे हैं

किसी की बेवफ़ाई का गिला था
न जाने आप क्यूँ शरमा रहे हैं

ये दीवाना किसी की क्या सुनेगा
ये दीवाने किसे समझा रहे हैं

मनाने के लिए जश्न-ए-बहाराँ
नशेमन भी जलाए जा रहे हैं

'अमीर' उन को है फ़िक्र-ए-चश्म-ए-नम भी
वो दामन भी बचाए जा रहे हैं