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अगर कार-ए-मोहब्बत में मोहब्बत रास आ जाती | शाही शायरी
agar kar-e-mohabbat mein mohabbat ras aa jati

ग़ज़ल

अगर कार-ए-मोहब्बत में मोहब्बत रास आ जाती

कामी शाह

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अगर कार-ए-मोहब्बत में मोहब्बत रास आ जाती
तुम्हारा हिज्र अच्छा था जो वसलत रास आ जाती

गला फाड़ा नहीं करते रफ़ू दरयाफ़्त करने में
अगर बेकार रहने की मशक़्क़त रास आ जाती

तुम्हें सय्याद कहने से अगर हम बाज़ आ जाते
हमें भी इस तमाशे में सुकूनत रास आ जाती

फ़क़त ग़ुस्सा पिए जाते हैं रोज़ ओ शब के झगड़े में
कोई हंगामा कर सकते जो वहशत रास आ जाती

अगर हम पार कर सकते ये अपनी ज़ात का सहरा
तो अपने साथ रहने की सहूलत रास आ जाती