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अगर इतना न तू अय्यार होता | शाही शायरी
agar itna na tu ayyar hota

ग़ज़ल

अगर इतना न तू अय्यार होता

पंडित जवाहर नाथ साक़ी

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अगर इतना न तू अय्यार होता
तो दुश्मन का न हरगिज़ यार होता

दुई का नक़्श मिटता दिल से ऐ काश
मय-ए-वहदत से मैं सरशार होता

जो होते आज-कल क़ैस और फ़रहाद
मैं उन का क़ाफ़िला-सालार होता

न होता गर तिरा तालिब जहाँ में
तो मैं पाबंद-ए-नंग-ओ-आर होता

लगाए चाट पर हैं उस को दुश्मन
इलाही मैं भी कुछ ज़रदार होता

अगर होता मुझे पास आबरू का
न तेरा आशिक़-ए-दीदार होता

तड़पता है क़फ़स में ताइर-ए-दिल
निकल जाता अगर पर-दार होता

तमन्ना दिल की 'साक़ी' जब निकलती
अगर मुँह से न कुछ इज़हार होता