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अगर इन बाज़ूओं में दम नहीं है | शाही शायरी
agar in bazuon mein dam nahin hai

ग़ज़ल

अगर इन बाज़ूओं में दम नहीं है

शारिब लखनवी

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अगर इन बाज़ूओं में दम नहीं है
तो गुलशन भी क़फ़स से कम नहीं है

मिरे साज़-ए-जुनूँ के छेड़ने को
कली का इक तबस्सुम कम नहीं है

मुझे दुनिया मिरे आलम में देखे
हर-इक आलम मिरा आलम नहीं है

न दे मुझ को फ़रेब-ए-इश्क़ दुनिया
फ़रेब-ए-ज़िंदगी कुछ कम नहीं है

ग़म‌‌‌‌-ए-तौहीन-ए-मय-ख़ाना है 'शारिब'
मुझे तिश्ना-लबी का ग़म नहीं है