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अगर हर चीज़ में उस ने असर रक्खा हुआ है | शाही शायरी
agar har chiz mein usne asar rakkha hua hai

ग़ज़ल

अगर हर चीज़ में उस ने असर रक्खा हुआ है

अकरम महमूद

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अगर हर चीज़ में उस ने असर रक्खा हुआ है
तो फिर अब तक मुझे क्यूँ बे-हुनर रक्खा हुआ है

तअ'ल्लुक़ ज़िंदगी से मुख़्तसर रक्खा हुआ है
कि शानों पर नहीं नेज़े पे सर रखा हुआ है

ज़माने से अभी तक पूछते हैं उस की बातें
उसे हम ने अभी तक बे-ख़बर रक्खा हुआ है

अब ऐसी बे-समर साअत में उस की याद कैसी
ये दुख अच्छे दिनों की आस पर रक्खा हुआ है

निकलना चाहता है वुसअ'त-ए-सहरा में वहशी
बड़े जतनों से दिल को बाँध कर रक्खा हुआ है

सदा देता है रोज़-ओ-शब कोई ऐसा जज़ीरा
जहाँ मेरे भी हिस्से का समर रक्खा हुआ है

न जाने कौन सी मंज़िल पे बुझ जाएँ मिरी आँखें
सो मैं ने इक इक हम-सफ़र रक्खा हुआ है