अगर है रेत की दीवार ध्यान टूटेगा
ये हौसला न पस-ए-इम्तिहान टूटेगा
जहाँ जहाँ भी मिरा नाम है फ़साने में
वहाँ वहाँ तिरा ज़ोर-ए-बयान टूटेगा
तसव्वुरात के घर में ख़मोश बैठा हूँ
तुम आओगे तो ख़याली मकान टूटेगा
कसीफ़ धूप से जल जाएगा हसीन बदन
मिरी उमीद का जब साएबान टूटेगा
अजीब कर्ब में डूबी हुई सदा होगी
ग़ुरूर जब तिरा बन कर चटान टूटेगा
न रास आएगी जब हम को मौज-ए-सैल-ए-रवाँ
हमारी कश्ती पे जब बादबान टूटेगा
मुझे यक़ीं तिरे जल्वे फ़रेब दे देंगे
मिरी निगाह का जब भी गुमान टूटेगा
ये ज़ुल्म-ओ-जौर के ऐवान फिर कहाँ होंगे
ये बे-सुतून अगर आसमान टूटेगा
सवाद-ए-मंज़िल-ए-इदराक पाएगा 'राही'
निशान बन के अगर बे-निशान टूटेगा
ग़ज़ल
अगर है रेत की दीवार ध्यान टूटेगा
इम्तियाज़ अहमद राही