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अगर गुल में प्यारे तिरी बू न होवे | शाही शायरी
agar gul mein pyare teri bu na howe

ग़ज़ल

अगर गुल में प्यारे तिरी बू न होवे

इश्क़ औरंगाबादी

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अगर गुल में प्यारे तिरी बू न होवे
वो मंज़ूर-ए-बुलबुल किसी रू न होवे

तिरे बिन तो फ़िरदौस मुझ को जहन्नम
क़यामत हो मुझ पर अगर तू न होवे

हो उस बज़्म में शम्अ कब रौनक़-अफ़ज़ा
जहाँ महफ़िल-अफ़रोज़ मह-रू न होवे

ये आईना ले जा के पत्थर से फोड़ूँ
परी का अगर दरमियाँ रू न होवे

महकती है ज़ुल्फ़-ए-सियह उस की हर रात
कहीं उस में 'इश्क़' इत्र-ए-शब्बू न होवे