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अगर दिल इश्क़ सीं ग़ाफ़िल रहा है | शाही शायरी
agar dil ishq sin ghafil raha hai

ग़ज़ल

अगर दिल इश्क़ सीं ग़ाफ़िल रहा है

आबरू शाह मुबारक

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अगर दिल इश्क़ सीं ग़ाफ़िल रहा है
तो अपने फ़न में ना-क़ाबिल रहा है

दिल ओ दीं से तो गुज़रा अब ख़ुदी छोड़
घर उस मह का अब इक मंज़िल रहा है

जुदाई के करे तदबीर अब कौन
ये दिल था सो उसी सीं मिल रहा है

न बाँधो सैद रहने का नहीं बाज़
दिल अपनी हरकतों सीं हल रहा है

मिस्ल-ए-बर्क़ दुनिया से गुज़र जा
इता क्यूँ इस में बे-हासिल रहा है

नहीं तज़मीन का ज़ौक़ 'आबरू' को
कहाँ उस कूँ दिमाग़ ओ दिल रहा है