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अगर बात तेरी हो प्यारी लगे | शाही शायरी
agar baat teri ho pyari lage

ग़ज़ल

अगर बात तेरी हो प्यारी लगे

शाह हुसैन नहरी

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अगर बात तेरी हो प्यारी लगे
जो हो बात करना तो भारी लगे

तिरे हाथ ही से अता हो जो तेरी
तो थोड़ी सी भी मुझ को सारी लगे

दम-ए-सुब्ह तारे से सूरज निशाँ
उन्हें बर्ग-ए-गुल की अमारी लगे

कोई चाहे लूटे मज़े याँ के याँ
मुझे ज़िंदगी मर्ग यारी लगे

समुंदर से प्यासे को ऐ 'शाह'-जी
मज़ा नद्दियों का भी खारी लगे