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अगर आशिक़ कोई पैदा न होता | शाही शायरी
agar aashiq koi paida na hota

ग़ज़ल

अगर आशिक़ कोई पैदा न होता

अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ

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अगर आशिक़ कोई पैदा न होता
तो माशूक़ों का ये चर्चा न होता

गरेबाँ चाक कर रोते कहाँ हम
अगर ये दामन-ए-सहरा न होता

सदा रहती तवक़्क़ो बुलबुलों को
अगर ये ग़ुंचा-ए-गुल वा न होता

जुदाई में अगर आँखें न रोतीं
तो हरगिज़ राज़-ए-दिल इफ़शा न होता

'फ़ुग़ाँ' कौन अब ख़रीदार-ए-सुख़न था
अगर ये हज़रत-ए-सौदा न होता