अफ़्सोस कि दंदाँ का किया रिज़्क़ फ़लक ने
जिन लोगों की थी दर-ख़ुर-ए-अक़्द-ए-गुहर अंगुश्त
काफ़ी है निशानी तिरा छल्ले का न देना
ख़ाली मुझे दिखला के ब-वक़्त-ए-सफ़र अंगुश्त
लिखता हूँ 'असद' सोज़िश-ए-दिल से सुख़न-ए-गर्म
ता रख न सके कोई मिरे हर्फ़ पर अंगुश्त
ग़ज़ल
अफ़्सोस कि दंदाँ का किया रिज़्क़ फ़लक ने
मिर्ज़ा ग़ालिब