अफ़सोस गुज़र गई जवानी
वो लम्हा-ए-कैफ़-ओ-शादमानी
क्या आ गई नींद अहल-ए-महफ़िल
कहनी थी हमें भी इक कहानी
मैं हुस्न-ए-वफ़ा की ज़िंदगी था
तुम ने मिरी क़द्र ही न जानी
अब तक ऐमन की वादियों से
आती है सदा-ए-लन-तरानी
'सीमाब' करो अब अल्लाह अल्लाह
ता-चंद ये मातम-ए-जवानी
ग़ज़ल
अफ़सोस गुज़र गई जवानी
सीमाब अकबराबादी