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अफ़सोस गुज़र गई जवानी | शाही शायरी
afsos guzar gai jawani

ग़ज़ल

अफ़सोस गुज़र गई जवानी

सीमाब अकबराबादी

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अफ़सोस गुज़र गई जवानी
वो लम्हा-ए-कैफ़-ओ-शादमानी

क्या आ गई नींद अहल-ए-महफ़िल
कहनी थी हमें भी इक कहानी

मैं हुस्न-ए-वफ़ा की ज़िंदगी था
तुम ने मिरी क़द्र ही न जानी

अब तक ऐमन की वादियों से
आती है सदा-ए-लन-तरानी

'सीमाब' करो अब अल्लाह अल्लाह
ता-चंद ये मातम-ए-जवानी