अदू तो क्या ये फ़लक भी उसे सता न सका
ख़ुशी हँसा न सकी ग़म जिसे रुला न सका
न पूछ उस की दिल-अफ़्सुर्दगी की कैफ़िय्यत
जो ग़म-नसीब ख़ुशी में भी मुस्कुरा न सका
वो पूछ बैठे यकायक जो वज्ह-ए-बे-ताबी
खुजा के रह गया सर बात कुछ बना न सका
वो देख लें न कहीं मेरी चश्म-ए-पुर-नम को
गया तो मिलने को आँखें मगर मिला न सका
ये दो-दिली में रहा घर न घाट का 'अंजुम'
बुतों को कर न सका ख़ुश ख़ुदा को पा न सका
ग़ज़ल
अदू तो क्या ये फ़लक भी उसे सता न सका
अंजुम मानपुरी