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अदू तो क्या ये फ़लक भी उसे सता न सका | शाही शायरी
adu to kya ye falak bhi use sata na saka

ग़ज़ल

अदू तो क्या ये फ़लक भी उसे सता न सका

अंजुम मानपुरी

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अदू तो क्या ये फ़लक भी उसे सता न सका
ख़ुशी हँसा न सकी ग़म जिसे रुला न सका

न पूछ उस की दिल-अफ़्सुर्दगी की कैफ़िय्यत
जो ग़म-नसीब ख़ुशी में भी मुस्कुरा न सका

वो पूछ बैठे यकायक जो वज्ह-ए-बे-ताबी
खुजा के रह गया सर बात कुछ बना न सका

वो देख लें न कहीं मेरी चश्म-ए-पुर-नम को
गया तो मिलने को आँखें मगर मिला न सका

ये दो-दिली में रहा घर न घाट का 'अंजुम'
बुतों को कर न सका ख़ुश ख़ुदा को पा न सका