अदम में क्या अजब रानाइयाँ हैं
मगर सब दहर की परछाइयाँ हैं
भली लगती नहीं तकरार इतनी
ब-ज़ाहिर बे-ज़रर सच्चाइयाँ हैं
वो ख़ुद शो'ले से अब दामन बचाए
बहुत रुस्वा मिरी तन्हाइयाँ हैं
मैं अपने वार खा कर और बिफरूँ
ग़ज़ब की मार्का-आराईयाँ हैं
है आलम एक जैसा हर ख़ुशी का
अलम की अन-गिनत पहनाइयाँ हैं
जुनूँ के सर है जो इल्ज़ाम 'शाहीन'
हवस की हाशिया-आराईयाँ हैं
ग़ज़ल
अदम में क्या अजब रानाइयाँ हैं
वली आलम शाहीन