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अदम में क्या अजब रानाइयाँ हैं | शाही शायरी
adam mein kya ajab ranaiyan hain

ग़ज़ल

अदम में क्या अजब रानाइयाँ हैं

वली आलम शाहीन

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अदम में क्या अजब रानाइयाँ हैं
मगर सब दहर की परछाइयाँ हैं

भली लगती नहीं तकरार इतनी
ब-ज़ाहिर बे-ज़रर सच्चाइयाँ हैं

वो ख़ुद शो'ले से अब दामन बचाए
बहुत रुस्वा मिरी तन्हाइयाँ हैं

मैं अपने वार खा कर और बिफरूँ
ग़ज़ब की मार्का-आराईयाँ हैं

है आलम एक जैसा हर ख़ुशी का
अलम की अन-गिनत पहनाइयाँ हैं

जुनूँ के सर है जो इल्ज़ाम 'शाहीन'
हवस की हाशिया-आराईयाँ हैं