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अदा-ओ-नाज़ में कुछ कुछ जो होश उस ने सँभाला है | शाही शायरी
ada-o-naz mein kuchh kuchh jo hosh usne sambhaala hai

ग़ज़ल

अदा-ओ-नाज़ में कुछ कुछ जो होश उस ने सँभाला है

नज़ीर अकबराबादी

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अदा-ओ-नाज़ में कुछ कुछ जो होश उस ने सँभाला है
तो अपने हुस्न का क्या क्या दिलों में शोर डाला है

अभी क्या उम्र है क्या अक़्ल है क्या फ़हम है लेकिन
अभी से दिल-फ़रेबी का लहर इक नक़्शा निराला है

तबस्सुम क़हर हँस देना क़यामत देखना आफ़त
पलक देखो तो नश्तर है निगह देखो तो भाला है

अभी नोक-ए-निगह में इस क़दर तेज़ी नहीं तिस पर
कई ज़ख़्मी किए हैं और कई को मार डाला है

अकड़ना तन के चलना धज बनाना वज़्अ दिखलाना
कभी नीमा कभी चपकन कभी ख़ाली दोशाला है

किसी के साथ काँधे पर किसी के लात सीने पर
कहीं नफ़रत कहीं उल्फ़त कहीं हीला-हवाला है

'नज़ीर' ऐसा ही दिलबर शोहरा-ए-आफ़ाक़ होता है
अभी से देखिए फ़ित्ने ने कैसा ढब निकाला है