अच्छी निभी बुतान-ए-सितम-आश्ना के साथ
अब बा'द-ए-मर्ग देखिए क्या हो ख़ुदा के साथ
जब से वो सुन चुके हैं कि हम ख़्वाब में चले
नीची निगाह भी नहीं करते हया के साथ
यूँ गुमरहान-ए-इ'श्क़ हैं रहज़न के साथ ख़ुश
गोया कि हो लिए हैं किसी रहनुमा के साथ
मांगों दुआ-ए-मर्ग तो आमीं कहे अदू
अब उन की बद-दुआ' है मिरे मुद्दआ' के साथ
यूँ कहते हैं कि तुझ को सताए ही जाएँगे
गोया कि मुझ को इश्क़ है अपनी वफ़ा के साथ
ग़ैरों ने बे-दिली से मिरी पाए मुद्दआ'
मैं गुम हुआ न क्यूँ दिल-ए-हसरत-फ़ज़ा के साथ
शर्मिंदा-ए-बुताँ न हुए लाख लाख शुक्र
'सालिक' ख़ुदा ने हम को उठाया वफ़ा के साथ
ग़ज़ल
अच्छी निभी बुतान-ए-सितम-आश्ना के साथ
क़ुर्बान अली सालिक बेग