EN اردو
अच्छे हैं फ़ासले के ये तारे सजाते हैं | शाही शायरी
achchhe hain fasle ke ye tare sajate hain

ग़ज़ल

अच्छे हैं फ़ासले के ये तारे सजाते हैं

तासीर सिद्दीक़ी

;

अच्छे हैं फ़ासले के ये तारे सजाते हैं
जितना क़रीब जाओ नज़र दाग़ आते हैं

वो राय देते हैं यहाँ जो हार जाते हैं
जो जीत जाते हैं वो कहानी सुनाते हैं

क़िल्लत बड़ी है वक़्त की क्या रू-ब-रू मिले
अब लोग सिर्फ़ फ़ोन से रिश्ते निभाते हैं

किस तरह लाऊँ अपने लबों तक मैं हाल-ए-दिल
है मसअला लबों का कि ये मुस्कुराते हैं

लब पे कभी ठहरती नहीं देर तक हँसी
ग़म मेरे दिल के दश्त में ख़ेमे लगाते हैं