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अच्छा तो तुम ऐसे थे | शाही शायरी
achchha to tum aise the

ग़ज़ल

अच्छा तो तुम ऐसे थे

शारिक़ कैफ़ी

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अच्छा तो तुम ऐसे थे
दूर से कैसे लगते थे

हाथ तुम्हारे शाल में भी
कितने ठंडे रहते थे

सामने सब के उस से हम
खिंचे खिंचे से रहते थे

आँख कहीं पर होती थी
बात किसी से करते थे

क़ुर्बत के उन लम्हों में
हम कुछ और ही होते थे

साथ में रह कर भी उस से
चलते वक़्त ही मिलते थे

इतने बड़े हो के भी हम
बच्चों जैसा रोते थे

जल्द ही उस को भूल गए
और भी धोके खाने थे