अच्छा है उन से कोई तक़ाज़ा किया न जाए
अपनी नज़र में आप को रुस्वा किया न जाए
हम हैं तिरा ख़याल है तेरा जमाल है
इक पल भी अपने आप को तन्हा किया न जाए
उठने को उठ तो जाएँ तिरी अंजुमन से हम
पर तेरी अंजुमन को भी सूना किया न जाए
उन की रविश जुदा है हमारी रविश जुदा
हम से तो बात बात पे झगड़ा किया न जाए
हर-चंद ए'तिबार में धोके भी हैं मगर
ये तो नहीं किसी पे भरोसा किया न जाए
लहजा बना के बात करें उन के सामने
हम से तो इस तरह का तमाशा किया न जाए
इनआ'म हो ख़िताब हो वैसे मिले कहाँ
जब तक सिफ़ारिशों को इकट्ठा किया न जाए
इस वक़्त हम से पूछ न ग़म रोज़गार के
हम से हर एक घूँट को कड़वा किया न जाए
ग़ज़ल
अच्छा है उन से कोई तक़ाज़ा किया न जाए
जाँ निसार अख़्तर