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अच्छा है उन से कोई तक़ाज़ा किया न जाए | शाही शायरी
achchha hai un se koi taqaza kiya na jae

ग़ज़ल

अच्छा है उन से कोई तक़ाज़ा किया न जाए

जाँ निसार अख़्तर

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अच्छा है उन से कोई तक़ाज़ा किया न जाए
अपनी नज़र में आप को रुस्वा किया न जाए

हम हैं तिरा ख़याल है तेरा जमाल है
इक पल भी अपने आप को तन्हा किया न जाए

उठने को उठ तो जाएँ तिरी अंजुमन से हम
पर तेरी अंजुमन को भी सूना किया न जाए

उन की रविश जुदा है हमारी रविश जुदा
हम से तो बात बात पे झगड़ा किया न जाए

हर-चंद ए'तिबार में धोके भी हैं मगर
ये तो नहीं किसी पे भरोसा किया न जाए

लहजा बना के बात करें उन के सामने
हम से तो इस तरह का तमाशा किया न जाए

इनआ'म हो ख़िताब हो वैसे मिले कहाँ
जब तक सिफ़ारिशों को इकट्ठा किया न जाए

इस वक़्त हम से पूछ न ग़म रोज़गार के
हम से हर एक घूँट को कड़वा किया न जाए