अच्छा है तू ने इन दिनों देखा नहीं मुझे
दुनिया ने तेरे काम का छोड़ा नहीं मुझे
हाँ ठीक है मैं भूला हुआ हूँ जहान को
लेकिन ख़याल अपना भी होता नहीं मुझे
अब अपने आँसुओं पे है सैराबी-ए-हयात
कुछ और इस फ़लक पे भरोसा नहीं मुझे
है मेहरबाँ कोई जो किए जा रहा है काम
वर्ना मआश का तो सलीक़ा नहीं मुझे
ऐ रह-गुज़ार-ए-सिलसिला-ए-इश्क़-ए-बे-लगाम
जाना कहाँ है तू ने बताया नहीं मुझे
है तो मिरा भी नाम सर-ए-फ़हरिस-ए-जुनूँ
लेकिन अभी किसी ने पुकारा नहीं मुझे
ग़ज़ल
अच्छा है तू ने इन दिनों देखा नहीं मुझे
फ़ैज़ी