EN اردو
अच्छा है कोई तीर-बा-नश्तर भी ले चलो | शाही शायरी
achchha hai koi tir-ba-nashtar bhi le chalo

ग़ज़ल

अच्छा है कोई तीर-बा-नश्तर भी ले चलो

अब्दुल्लतीफ़ शौक़

;

अच्छा है कोई तीर-बा-नश्तर भी ले चलो
कुछ यादगार-ए-शहर-ए-सितमगर भी ले चलो

सब जा रहे गुलाब से चेहरे लिए हुए
तुम आइनों के शहर में पत्थर भी ले चलो

यूँ कम नहीं है शीरीं-बयानी ही आप की
चाहो तो आस्तीन में ख़ंजर भी ले चलो

मुझ को किसी यज़ीद की बैअत नहीं क़ुबूल
नेज़े ये रक्खो आओ मिरा सर भी ले चलो

क्या जाने कैसे ख़्वाब सजाने पड़ें ऐ 'शौक़'
आँखो में इक हसीन सा मंज़र भी ले चलो